Abstract: भारतीय समाज विश्व की उन प्राचीनतम सामाजिक संरचनाओं में से है, जिसने समय के उतार-चढ़ाव, विदेशी आक्रमणों और सांस्कृतिक संपर्कों के बावजूद अपनी मौलिक पहचान बनाए रखी। इस समाज की सबसे बड़ी विशेषता इसकी गहरी सांस्कृतिक जड़ें हैं, जिन्हें संस्कारों ने निरंतर सिंचित किया। संस्कार केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक नियम और सांस्कृतिक अनुशासन का वह तंत्र हैं, जिसने भारतीय समाज को एक विशिष्ट स्वरूप प्रदान किया। भारतीय समाज की नींव परिवार और समुदाय पर आधारित रही है। इन संस्थाओं को संगठित और अनुशासित बनाए रखने में संस्कारों ने निर्णायक भूमिका निभाई। जन्म से मृत्यु तक के संस्कारों की परंपरा ने व्यक्ति को समाज से जोड़ा और समाज को सांस्कृतिक एकता प्रदान की। विशेष रूप से वर्ण और आश्रम व्यवस्थाएँ संस्कारों के माध्यम से ही व्यवहारिक जीवन का अंग बनीं। विवाह, उपनयन, श्राद्ध आदि संस्कार न केवल धार्मिक धरोहर हैं, बल्कि सामाजिक उत्तरदायित्व और नैतिक अनुशासन का प्रतीक भी हैं। यह शोधपत्र भारतीय समाज की संरचना और उसमें संस्कारों की भूमिका का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसमें यह विवेचना की गई है कि किस प्रकार संस्कारों ने सामाजिक अनुशासन, सांस्कृतिक निरंतरता और सामूहिक चेतना को जन्म दिया। अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि भारतीय समाज की आत्मा संस्कारों में निहित है। वे समाज को एक अदृश्य सूत्र में बाँधते हैं और उसकी विशिष्ट पहचान को युगों-युगों तक अक्षुण्ण बनाए रखते हैं।