भारत छोड़ो आंदोलन, जिसे अगस्त क्रांति के नाम से भी जाना जाता है, 1942 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय जनता द्वारा ब्रिटिश शासन के खिलाफ चलाया गया । यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक और गहन चरण था, जिसने देशभर में जन-जागरूकता, प्रतिरोध और राजनीतिक सक्रियता की लहर पैदा की । ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग, सत्याग्रह और नागरिक अवज्ञा इस आंदोलन की मुख्य रणनीतियाँ थीं । यह केवल राजनीतिक संघर्ष तक सीमित नहीं था, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी इसका व्यापक प्रभाव दिखाई दिया । बिहार, स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक केंद्रों में से एक रहा है । यहाँ के शहरी केंद्र जैसे पटना, गया और भागलपुर आंदोलन के मुख्य केंद्र बने, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर ब्रिटिश नीतियों का विरोध किया । बिहार की महिलाओं ने इस आंदोलन में अपनी भूमिका निभाते हुए साहस, नेतृत्व और त्याग की मिसाल प्रस्तुत की । उनका योगदान केवल समर्थन करने तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वे सक्रिय रूप से आंदोलन के नेतृत्व, संगठन और रणनीति में भी शामिल रहीं ।1 महिलाओं ने आंदोलन में विभिन्न रूपों में भागीदारी की । शहरी क्षेत्रों में वे सरकारी कार्यालयों, चाय और रेल स्टेशनों का घेराव करती थीं, सत्याग्रह और हड़तालों में भाग लेती थीं, और आंदोलन की सूचनाओं का आदान-प्रदान करती थीं । ग्रामीण क्षेत्रों में उन्होंने गांवों में जन-जागरूकता फैलाने, सत्याग्रह आयोजित करने और स्थानीय नेतृत्व का मार्गदर्शन करने में योगदान दिया ।
सांस्कृतिक और सामाजिक माध्यमों का उपयोग करके महिलाओं ने आंदोलन की भावना को जन-जन तक पहुँचाया । नारे, लोकगीत, नाटक और सभाओं के माध्यम से जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया गया । इस प्रकार महिलाओं ने न केवल प्रत्यक्ष संघर्ष में भाग लिया, बल्कि आंदोलन की विचारधारा और संदेश को व्यापक स्तर तक पहुँचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया ।2 महिलाओं का साहस और त्याग उनके जेल संघर्ष और बलिदान में स्पष्ट दिखाई देता है । कई महिला क्रांतिकारिणियाँ गिरफ्तार हुईं, जेल में कठिनाइयाँ सहन कीं, और आंदोलन की भावना को जीवित रखने में अग्रणी रहीं । उनका यह बलिदान पुरुष स्वतंत्रता सेनानियों के लिए भी प्रेरणास्त्रोत बना ।3 इस शोध लेख का उद्देश्य बिहार की महिलाओं के योगदान को ऐतिहासिक दृष्टि से विश्लेषित करना है । इसमें महिलाओं की प्रमुख क्रांतिकारिणियों की भूमिकाओं, ग्रामीण और शहरी भागीदारी, जेल संघर्ष, सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान, नेतृत्व और रणनीति का अध्ययन किया गया है । बिहार की महिलाओं ने न केवल आंदोलन को मजबूती दी, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपनी अमूल्य छाप भी छोड़ी । उनका योगदान यह स्पष्ट करता है कि स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के संघर्ष के समान महत्वपूर्ण थी और उनके साहस, नेतृत्व और त्याग की मिसाल आज भी प्रेरणादायक है ।