छत्तीसगढ़, लोकसंस्कृति, स्थापत्य कला, धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक संरक्षण, वैश्वीकरण
Author(s): ज्योतिमा पटेल और संजना सिंह
Abstract: छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत विविधता, जीवंतता और गहराई से समृद्ध है, जिसमें जनजातीय परंपराएं, लोककला, वास्तुशिल्प, लोकगीत-नृत्य एवं धार्मिक विश्वास अद्वितीय रूप में अभिव्यक्त होते हैं। यह शोधपत्र छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विशेषताओं के ऐतिहासिक, सामाजिक एवं धार्मिक पहलुओं का समग्र अध्ययन प्रस्तुत करता है। सिरपुर, मल्हार जैसे स्थलों की स्थापत्य परंपरा और नागर, द्रविड़ एवं वेसर शैलियों में निर्मित मंदिरों की मूर्तिकला, राज्य की कलात्मक श्रेष्ठता को दर्शाती है। लोकगीतों और लोकनृत्यों जैसे ददरिया, राउत नाचा, करमा में न केवल भावनात्मक अभिव्यक्ति है, बल्कि सामूहिक पहचान भी निहित है। साथ ही, ग्राम देवताओं की पूजा, देवी आराधना और जनजातीय विश्वास, मुख्यधारा के धार्मिक ढाँचों से अलग एक स्वतंत्र धार्मिक चेतना को उजागर करते हैं। परंतु आधुनिकता, शहरीकरण और वैश्वीकरण ने सांस्कृतिक मूल्यों को नई चुनौतियाँ दी हैं, जिससे सांस्कृतिक विस्मृति और मूल परंपराओं के क्षरण का खतरा उत्पन्न हुआ है। इस संदर्भ में डिजिटल अभिलेखन, शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में लोकसंस्कृति का समावेश और राज्यस्तरीय नीतियों की आवश्यकता महसूस की जा रही है। यह अध्ययन न केवल सांस्कृतिक पहचान के पुनरावलोकन का आग्रह करता है, बल्कि आने वाले समय में शोध, संरक्षण एवं नीति-निर्माण के लिए भी दिशा प्रदान करता है।
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How to cite this article:
ज्योतिमा पटेल और संजना सिंह. छत्तीसगढ़, लोकसंस्कृति, स्थापत्य कला, धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक संरक्षण, वैश्वीकरण. Int J Hist 2025;7(8):16-18.