भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महिला प्रतिरोध
Author(s): सुषमा सिंह
Abstract: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन केवल औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध एक राजनीतिक संघर्ष नहीं था, बल्कि यह एक सामाजिक क्रांति भी थी, जिसमें भारतीय महिलाओं की सक्रिय भागीदारी और त्याग देखने को मिला। ऐतिहासिक रूप से महिलाएं घरेलू सीमाओं में बंधी थीं, किंतु स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उन्होंने परिवर्तन की सशक्त प्रतिनिधि के रूप में उभर कर देश की दिशा बदल दी। प्रस्तुत अध्ययन 1857 से 1947 तक के कालखंड में राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भूमिका और उनके प्रतिरोध का विश्लेषण करता है। इस शोध का उद्देश्य विभिन्न आंदोलनों में महिलाओं के योगदान को उजागर करना तथा उनके सामाजिक और राजनीतिक रूपांतरण को समझना है। अनुसंधान पद्धति के रूप में ऐतिहासिक, वर्णनात्मक और विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है, जिसमें राजकीय अभिलेख, गजेटियर, सरकारी रिपोर्टें तथा द्वितीयक स्रोतों का अध्ययन किया गया है। परिणामों से स्पष्ट हुआ कि रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, एनी बेसेंट, सरोजिनी नायडू, कस्तूरबा गांधी और अरुणा आसफ अली जैसी अनेक महिलाओं ने न केवल आंदोलनों का नेतृत्व किया बल्कि हजारों अन्य महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ने की प्रेरणा दी। अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी ने उनके राजनीतिक चेतना और सामाजिक मुक्ति की नींव रखी। उनका साहस, नेतृत्व और बलिदान स्वतंत्र भारत में महिला सशक्तिकरण और समानता के युग का प्रारंभ बिंदु बना। यह ऐतिहासिक तथ्य इस बात को रेखांकित करता है कि भारत की स्वतंत्रता महिलाओं के पराक्रम से भी उतनी ही प्रेरित थी जितनी पुरुषों की रणनीति से।
DOI: 10.22271/27069109.2025.v7.i10a.535Pages: 44-48 | Views: 104 | Downloads: 45Download Full Article: Click Here