Abstract: यह शोध पत्र औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान प्रस्तुत धन की निकासी के सिद्धांत (Drain of Wealth Theory) का विश्लेषण करता है। इस सिद्धांत को सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने प्रतिपादित किया और यह बताया कि भारत में उत्पादित अधिशेष धन का बड़ा भाग ब्रिटेन भेजा जाता था। यह प्रक्रिया प्रशासनिक खर्च, सैन्य व्यय, अधिकारियों के वेतन-पेंशन, निर्यात अधिशेष तथा कंपनी के मुनाफे के रूप में संपन्न होती थी। परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक संरचना कमजोर हुई, पारंपरिक उद्योग-धंधे नष्ट हुए और व्यापक स्तर पर गरीबी तथा अकाल फैला। यह सिद्धांत न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को वैचारिक शक्ति भी प्रदान की। शोध का निष्कर्ष यह है कि धन की निरंतर निकासी औपनिवेशिक शोषण की सबसे ठोस अभिव्यक्ति थी, जिसने स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार की।