बिहार में सभाओं, सम्मेलनों एवं संगठनों के माध्यम से दलित (दुसाध) चेतना
Author(s): रौशन कुमार
Abstract: बिहार के दलितों या पिछड़ी जातियों के बीच उन्नीसवीं सदी के अंतिम कुछ वर्षों में कई संगठनों का बनना और सभाएँ एवं सम्मेलनों का आयोजन शुरू हो चुका था। इसका सबसे व्यापक एवं संगठित रूप से पहल दुसाध जाति समुदाय के लोगों ने की। पिछड़ी या दलित जातियों की एक बड़ी आबादी इसी वर्ग समुदाय की थी। हालांकि अंग्रेजों ने इस समुदाय को अपराधी जाति की सूची में शामिल कर दिया था, बावजूद इसके यह जाति विभिन्न जनगणनाओं के दौरान स्वयं को क्षत्रिय एवं उच्च वर्ग होने का दावा पेष करते रहे।
गौरतलब है कि 1891 ई0 में ही इस जाति वर्ग के सषक्त संगठन ‘दुसाधवंषीय क्षत्रिय महासभा’ की स्थापना की जा चुकी थी, किन्तु इस महासभा ने 1912 ई0 से बिहार में अपनी सक्रिय एवं तीव्र गतिविधियाँ प्रारंभ की। 1913 ई0 में दरभंगा, फतुहा (पटना) मुंगेर; 1915 ई0 में दानापुर तथा 1924 ई0 में समस्तीपुर आदि में इस महासभा ने छोटे-बड़े सम्मेलन आयोजित कर न केवल अपनी जाति में फैले विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अन्य अपराध छोड़ने संबंधी प्रयास किए, बल्कि स्वयं को ‘गहलौत राजपूत’ होने का दावा भी किया।
वहीं, 1937 ई0 में बिहार सरकार (कांग्रेस मंत्रीमंडल) ने प्रदेष में ताड़ी-व्यवसाय पर पूर्णतः अंकुष लगा दिया। परिणामस्वरूप ताड़ी-व्यवसाय करने वाले पासी समुदाय (जो दुसाधों की ही एक उपजाति है) ने 9 अक्टूबर, 1937 को ‘बिहार प्रदेष पासी सम्मेलन’ का पहला अधिवेषन आयोजित किया। इसके अतिरिक्त 1 नवम्बर, 1937 को भी पासी समुदायों ने अपनी एक सभा आयोजित की। इन सभाओं एंव सम्मेलनों के माध्यमों से पासी समुदायों ने ताड़ी-व्यवसाय छोड़ने पर पासियों को विभिन्न कल-कारखाना तथा अन्य क्षेत्रों में नौकरी सुनिष्चित करने और मजदूरी वृद्धि संबंधित कई मांगों से सरकार को अवगत कराया।
DOI: 10.22271/27069109.2022.v4.i1b.182Pages: 107-108 | Views: 41 | Downloads: 27Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
रौशन कुमार.
बिहार में सभाओं, सम्मेलनों एवं संगठनों के माध्यम से दलित (दुसाध) चेतना. Int J Hist 2022;4(1):107-108. DOI:
10.22271/27069109.2022.v4.i1b.182