पूर्व मध्यकालीन भारत की राजनीतिक स्थिति : एक अवलोकन (750-1100 ई॰)
Author(s): डॉ॰ नरेश राम
Abstract: पूर्व मध्ययुग का राजतंत्रीय सीमांकन परिवर्तनषील था और जिनको परिभाषित करना कठिन है। राजतंत्रों के केवल नाभिकीय क्षेत्रों और राजनीतिक केंद्रो को चिन्हित किया जा सकता है, इनकी सीमाओं को नहीं। इन शताब्दियों के राजनीतिक आख्यानों से कुछ बड़े तथा अपेक्षाकृत दीर्घकालिक राजतंत्रों की जानकारी मिलती है, जिनमें चोल, राष्ट्रकूट, पालवंष तथा प्रतिहारों का नाम लिया जा सकता है। वैसे अल्पकालिक अस्तित्ववाले राजतंत्रों की संख्या कहीं अधिक थी, जिनका नियंत्रण छोटे-छोटे क्षेत्रों में सिमित था। विभिन्न राजघरानों के बीच का सम्बंध युद्ध और संघर्ष से लेकर सैन्यसंधि या वैवाहिक संधि का रूप ग्रहण कर लेता था। इन राजघरानों ने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में किस प्रकार राजनीतिक आधार तथा कृषि संसाधनों को विकसित किया, इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है। दरअसल, राजनीतिक संरचनाआंे के केंद्र में स्वषाखीय वंषजों का अस्तित्व था।
राजनीतिक कुलीन वर्ग की स्थानिक गतिषीलता और उच्चस्तरीय सामरिक शक्ति का निर्माण, राजकीय समाज के विस्तार के साथ-साथ विकसित होते चली गई। इस युग में होने वाले अहर्निष युद्धों से यह स्पष्ट होता है कि दमनात्मक शक्ति और समकालीन राजनीति से सामरिक शक्ति के महत्त्व का पता चलता है। केंद्रीय सैन्य संगठनों के साथ-साथ सम्राटों के झगड़े सैनिकों पर भी आश्रित थे। उदाहरण के लिए, विहार और बंगाल से प्राप्त होने वाले पाल शासकों द्वारा निर्गत अभिलेखांे में गौड़, मालव, खास, कुलिक, हूण, कर्णाट तथा लाट के बहाल किए गए सैनिकों का भी उल्लेख है। राजतरंगिणी में भी कष्मीर के शासकों के द्वारा अन्य क्षेत्रों से बहाल किए गए भाडे़ के सैनिकों का भी वर्णन मिलता है। स्थायी तथा भाड़े पर बहाल किए गए सैनिकांे के अलावा समय की मांग के अनुसार, सहयोगी और अधीनस्थ शासकों से भी सैन्य सहायता ली जाती थी।
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डॉ॰ नरेश राम. पूर्व मध्यकालीन भारत की राजनीतिक स्थिति : एक अवलोकन (750-1100 ई॰). Int J Hist 2020;2(2):137-141.