मध्यकालीन मिथिला के समाज पर शाक्त धर्म का प्रभाव
Author(s): प्रीति प्रिया
Abstract: मध्यकालीन मिथिला में शुक्ल यर्जुवेद के समरस्ता का सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी और शास्त्रकार योगीन्द्र नाम के धर्म-शास्त्र शिरोमणि हुए। जैसा कि मिथिला मिहिर के 1936 के प्रकाशन में सम्पादक सुरेन्द्र झा सुमन ने इंगित किया है कि न्याय सूत्रकार गौतम, पुराण प्रसिद्ध मुनि है किन्तु न्याय शास्त्र के आचार्य के रूप में योगिन्द का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है और पुराणों ने इनका परिचय (मिथिला रहस्यः सः योगिन्द्रः) कहकर कराया है। सांख्य शास्त्र के आविष्कारकत्र्ता कपिल मुनि जो एक पुराने ऋषि भी हैं और प्रारंभिक मध्यकाल के माने जाते हैं, का वास भी मिथिला में ही था। कुछ विद्वानों का मत है कि वे कपिलेश्वर स्थान के रहने वाले थे तो कुछ दूसरों का मानना है कि वे दरभंगा शहर स्थित कादिराबाद, जो तब कपिलावाद के नाम से जाना जाता था, के रहने वाले थे। एक मत प्रर्वतक जहाँ प्रो. डा. सत्य नारायण ठाकुर हैं वही दूसरे मत के संस्थापक बिहारीलाल फितरत को कहा जाता है। इसके अलावा इसी कालखण्ड के विभिन्न चरणों में शतानन्द, विभाण्डक और इनसे पूर्व, सहरसा के मधेपुरा स्थित सिंहेश्वरस्थान मंदिर के संस्थापक ऋषि श्रृंणि थे जो पुराने प्रसिद्ध होने से सभी के परिचित भी हैं और श्रद्धा भाजन भी हैं। इनके अलावे मिथिला के विभूतियों में पुराण-प्रसिद्ध कणाद न्याय और परमाणु के प्रवर्तक थे, साथ ही कौशिक आदि का भी मिथिला के विभूतियांँ और सिद्धियों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
Pages: 117-120 | Views: 1022 | Downloads: 590Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
प्रीति प्रिया. मध्यकालीन मिथिला के समाज पर शाक्त धर्म का प्रभाव. Int J Hist 2020;2(2):117-120.