मध्यकालीन साहित्य और संस्कृति का ऐतिहासिक परिदृश्य
Author(s): डाॅ. पुष्पा कुमारी
Abstract: भारतीय इतिहास की परम्पपरा में गुप्तयुग के बाद दूसरा महत्त्वूपर्ण युग मध्ययुग का मुगलकाल ही माना जा सकता है। यही एक ऐसा काल था जब भारत में राजनीति, धर्म, समाज, साहित्य और कला आदि के क्षेत्र में कतिपय नवीनताओं, विचित्रताओं, संगतियों और विसंगतियों आदि का आधान हुआ। वस्तुतः यह युग दो संस्कृतियों के मिलन का युग था। भारतीय और मुगल सांस्कृति के मिलन से एक नई संस्कृति का जन्म हुआ। इस नवजात संस्कृति ने भारतीय जीवन के लगभग सभी पक्षों और परिवेशों को बड़ी गहराई तक स्पर्श किया इससे प्रभावित होकर अनेक कथाकारों ने ऐतिहासिक कथा साहित्य की रचना की।
मध्यकालीन साहित्य का वातावरण, वैयक्तिक परिस्थितियाँ भौतिक साधन व्यक्ति और समाज, की सांस्कृतिक विवेक का स्वरूप देते रहे हैं। प्रकृति की सीमाओं में मनुष्य ने जो विजय चाही उसका भौतिक स्वरूप, सभ्यता और आत्मिक अथवा स्वरूप संस्कृति हैं। सभ्यता बाह्य प्रकृति पर हमारी विजय गर्व ध्वज है और संस्कृति अन्तः प्रकृति और विजय की प्राप्ति की सिद्ध सामाजिक संस्थान, आर्थिक प्रेरण प्रक्रिया और भौगोलिक स्थिति की भूमिका मानसिक घात-प्रतिघात, क्रिया और ज्ञानात्मक विकास होते हैं। संस्कृति वह संगम है जो जीवन की संगति और सामंजस्यपूर्ण सतत् प्रवह्मान चीर-चैतन्य धारा की इकाई है। सामाजिक भूमिका में मानवार्जित क्षमता का एवं ज्ञान, आस्था कला, नैतिकता, कानून, रीति-नीति को स्वरूप देती है। जीवन की भौतिक प्रणाली आध्यात्मिक प्रेरणा को स्वरूप देती है आध्यात्मिक सांस्कृतिक ज्ञान भौतिकता का अनुशासन है। नाना-प्रकार की धर्म-साधनाओं, कलात्मक प्रयत्नों और सेवा भक्ति अथवा योग मूलक अनुभूतियाँ में जीवन का सत्य ही व्यापक और परिपूर्ण रूप प्राप्त करता रहा है। जन्मजात संस्कार, भौतिक प्रणाली, सांस्कृतिक ज्ञान की भूमिका में जीवन अनुप्रणित, नियंत्रित और अनुशासित होता रहा है।
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डाॅ. पुष्पा कुमारी. मध्यकालीन साहित्य और संस्कृति का ऐतिहासिक परिदृश्य. Int J Hist 2020;2(2):69-71.