कुषाण साम्राज्य में रेशम मार्ग की भूमिका और आर्थिक प्रभाव
Author(s): डॉ. मिथुन कुमार
Abstract: कुषाण साम्राज्य (लगभग पहली से तीसरी शताब्दी ईस्वी) भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक ऐसा काल था, जब भारत न केवल राजनीतिक स्थायित्व की ओर अग्रसर हुआ, बल्कि उसने पहली बार वैश्विक व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों में सशक्त भागीदारी भी की। इस साम्राज्य की स्थापना मूलतः मध्य एशिया से आए यूए-ची जातीय समूह द्वारा की गई थी, जो धीरे-धीरे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर-पश्चिमी भारत के विशाल क्षेत्रों पर अधिकार कर एक शक्तिशाली राजनीतिक सत्ता में बदल गया। इस साम्राज्य की भौगोलिक स्थिति अत्यंत रणनीतिक थी — यह रेशम मार्ग के मध्यवर्ती भाग में स्थित था, जो उसे पूर्वी और पश्चिमी एशिया के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक सेतु के रूप में स्थापित करता था। रेशम मार्ग एक विशाल अंतरमहाद्वीपीय व्यापारिक मार्ग था, जो चीन के हान साम्राज्य से प्रारंभ होकर मध्य एशिया, भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान, अरब और अंततः यूरोप के भूमध्यसागरीय क्षेत्रों तक फैला हुआ था। इस मार्ग के माध्यम से न केवल रेशम का व्यापार होता था, बल्कि मसाले, सुगंधित तेल, रत्न, बहुमूल्य धातुएँ, घोड़े, हाथी, औषधियाँ, वस्त्र, काष्ठ सामग्री, काँच की वस्तुएँ, और कलात्मक शिल्प सामग्री जैसे असंख्य व्यापारिक वस्तुएँ भी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रवाहित होती थीं। कुषाण शासक, विशेष रूप से कनिष्क, ने न केवल इस मार्ग की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि इसे सक्रिय रूप से बढ़ावा भी दिया। कनिष्क के अधीन कुषाण साम्राज्य की राजधानी पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) और मथुरा जैसे नगर व्यापार, संस्कृति और धर्म के महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गए। यहाँ से बौद्ध धर्म, विशेषकर महायान शाखा, चीन, मध्य एशिया और आगे कोरिया व जापान तक पहुँची। इसी मार्ग के माध्यम से बौद्ध भिक्षु, विद्वान, और कलाकार दूर-दूर तक यात्रा करते थे, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक विचारों का आदान-प्रदान हुआ।रेशम मार्ग के माध्यम से कुषाण साम्राज्य को रोमन साम्राज्य, पार्थियन साम्राज्य (ईरान), चीन के हान साम्राज्य और सोग्दियाना जैसे मध्य एशियाई क्षेत्रों से सीधा संपर्क प्राप्त हुआ। भारत से निर्यात होने वाले प्रमुख वस्तुओं में कपास, हाथीदांत, मसाले, बौद्ध कलाकृतियाँ और कीमती पत्थर प्रमुख थे। बदले में भारत को सोने-चांदी के सिक्के, सीसा, उच्च गुणवत्ता की शराब, ऊन, और यूनानी-रोमन कलात्मक शैलियों से युक्त वस्तुएँ प्राप्त होती थीं। इससे न केवल आर्थिक संपन्नता आई, बल्कि भारतीय कला, विशेष रूप से गांधार और मथुरा शैली की मूर्तिकला, यूनानी, रोमन और ईरानी प्रभावों से समृद्ध हुई।
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डॉ. मिथुन कुमार. कुषाण साम्राज्य में रेशम मार्ग की भूमिका और आर्थिक प्रभाव. Int J Hist 2025;7(5):200-203.