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International Journal of History

2025, Vol. 7, Issue 5, Part C

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समाजवादी विचारधारा की भूमिका: एक ऐतिहासिक विश्लेषण


Author(s): राकेश रौशन

Abstract: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह भारत के सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक पुनर्निर्माण की एक गहन प्रक्रिया भी थी। यह संघर्ष जहाँ एक ओर विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध भारतीय जनता की चेतना और प्रतिरोध का प्रतीक था, वहीं दूसरी ओर यह आंतरिक सामाजिक विषमताओं, आर्थिक शोषण और वैचारिक जड़ता को चुनौती देने का भी एक व्यापक प्रयास था। इसी व्यापकता में समाजवादी विचारधारा का उद्भव हुआ और उसने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई दिशा प्रदान की। समाजवाद की मूल भावना समानता, सामाजिक न्याय और संसाधनों के समान वितरण पर आधारित होती है। भारत में जब स्वतंत्रता संग्राम अपने तेज़ दौर में था, तब यह स्पष्ट हो चुका था कि केवल राजनैतिक स्वतंत्रता से सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं की जा सकती। इस बोध ने ही अनेक नेताओं, विचारकों और युवाओं को समाजवाद की ओर आकर्षित किया। वे मानते थे कि केवल विदेशी शासन से मुक्ति पर्याप्त नहीं है, बल्कि भारत को सामाजिक असमानता, जाति प्रथा, ज़मींदारी शोषण, बेरोजगारी और भुखमरी से भी मुक्त करना होगा। इन समस्याओं का समाधान पूंजीवादी या केवल राष्ट्रवादी दृष्टिकोण में नहीं था, बल्कि वह समाजवादी सिद्धांतों में निहित था।
समाजवाद ने स्वतंत्रता संग्राम को न केवल राजनीतिक आज़ादी तक सीमित रखने से रोका, बल्कि उसे एक जनकल्याणकारी राष्ट्र के निर्माण के विचार से जोड़ा। इस विचारधारा ने किसानों, मजदूरों, दलितों, स्त्रियों और शोषित वर्गों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा, जो पहले केवल पढ़े-लिखे या मध्यमवर्गीय नेताओं तक सीमित था। यही कारण है कि भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम को समाजवादी दिशा में मोड़ने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त, समाजवाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को वैश्विक जनांदोलन से भी जोड़ा। यूरोपीय समाजवादी आंदोलनों, रूसी क्रांति, लेनिन और मार्क्स के विचारों से प्रभावित भारतीय युवाओं ने यह समझा कि सामाजिक क्रांति के बिना कोई भी राजनीतिक स्वतंत्रता अधूरी रहेगी। इस तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल एक ‘स्वदेशी शासन’ की मांग नहीं बनकर रह गया, बल्कि वह एक समावेशी और समतामूलक समाज की स्थापना की प्रेरणा बन गया।
अतः यह कहा जा सकता है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा को यदि समग्र रूप से समझना है, तो उसमें समाजवादी विचारधारा की भूमिका का विश्लेषण अनिवार्य हो जाता है। यह विचारधारा स्वतंत्रता संग्राम को केवल एक राजनीतिक परियोजना न मानकर एक सामाजिक क्रांति के रूप में देखती है, जिसकी परिणति एक नए भारत की स्थापना में होनी थी—एक ऐसा भारत जो न्याय, समानता और भाईचारे पर आधारित हो।


DOI: 10.22271/27069109.2025.v7.i5c.417

Pages: 170-173 | Views: 136 | Downloads: 83

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How to cite this article:
राकेश रौशन. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में समाजवादी विचारधारा की भूमिका: एक ऐतिहासिक विश्लेषण. Int J Hist 2025;7(5):170-173. DOI: 10.22271/27069109.2025.v7.i5c.417
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