टीकमगढ़ दुर्ग का सांस्कृतिक महत्व
Author(s): शैलेन्द्र कुमार, डॉ० सावित्री सिंह परिहार
Abstract: टीकमगढ़ दुर्ग, मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक किला है, जो स्थापत्य और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में ओरछा राज्य के तहत हुआ, जिसकी स्थापना राजा रुद्र प्रताप सिंह लोधी ने की थी। सन् 1783 में ओरछा की राजधानी टेहरी (वर्तमान टीकमगढ़) स्थानांतरित होने पर इस दुर्ग का महत्व बढ़ा, और शहर का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया क्योंकि कृष्ण का नाम “टीकम
” मिलता है। दुर्ग का डिज़ाइन रणनीतिक रूप से बनाया गया, जिसमें कई प्रवेश द्वार, चौड़े गलियारे और पहरेदारों के लिए स्थान शामिल हैं। किले में सात मढ़ियाँ हैं, जो चारों दिशाओं में निगरानी के लिए बनाई गई थीं।पास में एक गहरा तालाब और खड़ा पहाड़ है, जो किले की सुरक्षा और सुंदरता को बढ़ाता है।किले में प्राचीन तोपें, जैसे "गर्भगिरावनी तोप", थीं, जो ऐतिहासिक महत्व की हैं, हालांकि कुछ को भोपाल के संग्रहालय में स्थानांतरित कर दिया गया। दुर्ग के दक्षिणी छोर पर बलदेव जी का प्राचीन मंदिर है, जिसके नाम पर बलदेवगढ़ का नामकरण हुआ। यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है। टीकमगढ़ ओरछा राज्य का हिस्सा था, जो बुंदेलखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यहाँ की कला, मूर्तिकला और स्थापत्य बुंदेली शैली को दर्शाते हैं। किले के खंडहर और अवशेष क्षेत्र के गौरवशाली अतीत की कहानी कहते हैं, जो मौर्य, शुंग और अन्य राजवंशों से जुड़े हैं। यह स्थल पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो बुंदेलखंड की वीरता और संस्कृति को समझने का अवसर प्रदान करता है। टीकमगढ़ दुर्ग न केवल एक रक्षात्मक संरचना है, बल्कि बुंदेलखंड की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत का जीवंत प्रतीक भी है। इसका भव्य डिज़ाइन और धार्मिक स्थल इसे एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल बनाते हैं, जो क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास को उजागर करता है।
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How to cite this article:
शैलेन्द्र कुमार, डॉ० सावित्री सिंह परिहार. टीकमगढ़ दुर्ग का सांस्कृतिक महत्व. Int J Hist 2025;7(4):33-38.