ब्रिटिशकालीन किसान आन्दोलन
Author(s): पीताम्बर मंगानी, लक्ष्मी देवी नंदा
Abstract: हमारा भारत देश एक कृषि प्रधान देश है। कृषि हमारे देश का आधार स्तम्भ है। देश का किसान खुशहाल होगा तभी देश खुशहाल होगा। कृषक समाज सबसे महत्वपूर्ण होते हुए भी पिछड़ा हुआ और समस्याओं से ग्रसित वर्ग रहा है। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि कृषक समाज को आगे बढ़ाने की, पिछले कुछ वर्षों में सामान्य वैज्ञानिकों का ध्यान इस दिशा में आकर्षित हुआ है। आज भूगोल, राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास आदि सभी विषयों में इस क्षेत्र में अध्ययन किये जा रहे हैं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। अतः कृषि के विकास की तरफ अत्यधिक महत्व देने की आवश्यकता है, किन्तु कृषक वर्ग की बहुत सी समस्यायें हैं। यद्यपि इन्हें दूर करने के लिए अनेक प्रयास और अध्ययन किये जा रहे हैं। फिर भी कृषक वर्ग समस्याओं से निरन्तर संघर्ष कर रहा है। आज यह वर्ग मौलिक, भौतिक सुविधाओं को प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है। मार्क्स का मानना है कि कृषक आलू के बोरे के समान है। उनमें क्रान्ति की कोई भावना नहीं है। किन्तु लेनिन ने इसे गलत सिद्ध करके दिखाया। 1917 की बोल्शेविक क्रान्ति मजदूरों और किसानों के ही असन्तोष का परिणाम थी। माउत्सेतुंग का मानना था कि “कृषक समुदाय ही समाज में परिवर्तन ला सकता है। यही वह समुदाय है जिनमें संघर्ष के गुण विद्यमान हैं जो क्रान्ति कर सकता है।“ मार्क्स ने लिखा है कि “ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक नीति का सबसे गम्भीर परिणाम समाज के जिस वर्ग पर पड़ा यह वर्ग कृषक ही था।“
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पीताम्बर मंगानी, लक्ष्मी देवी नंदा. ब्रिटिशकालीन किसान आन्दोलन. Int J Hist 2025;7(1):31-33.