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International Journal of History

2024, Vol. 6, Issue 2, Part F

मुगलकालीन बैंकिंग प्रणाली


Author(s): हिमांशु, प्रियंका चैहान

Abstract: मुगलकाल में मुद्रा प्रधान अर्थव्यवस्था का विकास हो गया था। इस काल के अन्तर्गत बैंकिंग प्रणाली व उसके विकास अर्थात मुद्रा के व्यापक प्रसार व चलन के संदर्भ में अध्ययन करना अतिआवश्यक हो जाता है। प्रारम्भ में मुद्रा प्रधान अर्थव्यवस्था गाँव से ही संचालित थी। गाँवों में भू-राजस्व, नगदी के रूप में भी वसूल किया जाता था। प्रतेक गाँव में सर्राफों का अलग वर्ग होता था। हर छोटे-बड़े गाँव में सर्राफ बैंकर का कार्य करते थे अर्थात रूपया भेजने और हुंडी जारी करने का कार्य भी करते थे। मुगलकाल में सर्राफों द्वारा हंुडियों का प्रयोग रकम भेजने के लिये व ऋण प्राप्त करने के लिये तथा व्यापारियों को सुविधा प्रदान करने आदि विभिन्न रूपों में किया जाता था। चेक और ड्राफ्ट के रूप में प्रयुक्त इन हुंडियों की तुलना आधुनिक बैंकिंग सुविधाओं से की जा सकती है एवं जिस प्रकार ये ऋण के लिये प्रयुक्त होती थी, वह भी तत्कालीन परिस्थितियों में अपने आप में सफल बैंकिंग सुविधाओं का संकेत देती हैं। हुंडियों के सफल संचालन से व्यापारी वर्ग ही नहीं अपितु प्रशासन व अमीर वर्ग यहाँ तक कि जन साधारण वर्ग भी लाभान्वित होते थे। मुगलकाल में बैंकिंग की पर्याप्त सुविधायें विद्यमान थी। सर्राफों द्वारा बीमा भी किया जाता था। मुगलकाल में अमीर वर्ग के लोग भी ऊँची दरों पर ऋण लेने के आदी थे। जिस कारण अकबर ने मजबूरन अमीरों को राज्य की ओर से ऋण देने की सुविधा प्रदान की थी। जिसे ‘मुसादाता‘ कहा जाता था। यह ऋण विशेष परिस्थितियों में दिया जाता था। इस प्रकार हम देखते हैं कि मुगलकाल में एक ऐसी अर्थव्यवस्था का विकास हुआ था जो मुद्रा पर आधारित थी। जिसमें हुंडी बीमा, बैंकिंग आदि सभी विकसित वाणिज्य पद्धतियाँ विद्यमान थी। सूदखोरी, तात्कालीक समाज की एक सामान्य विशिष्टता थी। जिसका प्रयोग वाणिज्य तथा कृषि में व्यापक परिवर्तन लाने के लिये नही किया जाता था और न ही पूंजी की वृद्धि, व्यापार और शिल्प में उन्नति के लिये बल्कि अपनी वृद्धि के लिये। बाद में सूदखोरी एक ऐसी संस्था के रूप में विकसित हो गई जिस पर सामान्य जन और विशिष्ट जन दोनो ही आश्रित थे। परन्तु इस विशिष्ट मौद्रिक व्यवस्था की स्थापना और विकास के बाद भी पूंजीवाद का विकास नहीं हो पाया। जिसका कारण शायद यह था कि बैंकिंग व्यवस्था का विकास वाणिज्य की व्यापकता के अनुरूप हुआ था। किन्तु यह वाणिज्य अपरिवर्तित हस्तशिल्प उत्पादन पर आधारित था और बैंकर की पूंजी का उत्पादन की प्रक्रिया पर कोई नियंत्रण नही था। अतः हम कह सकते हैं कि मुगलकाल में बैंकिग की सुविधाओं और सुविकसित बैकिंग प्रणाली का उत्पादन तकनीक के विकास से कोई सम्बंध नही था।

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How to cite this article:
हिमांशु, प्रियंका चैहान. मुगलकालीन बैंकिंग प्रणाली. Int J Hist 2024;6(2):380-382.
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