मौर्यकालीन अभिलेखों में मानव जीवन
Author(s): जगदीश प्रसाद बैरवा
Abstract: इतिहास का अध्ययन करने में विभिन्न स्त्रोत सहायक होते हंै। इन स्त्रोतों में अभिलेख विशिष्ट महत्तव रखते हैं। अभिलेख पाषाण खण्ड़, पाषाण स्तम्भ, ताम्र पत्र, धर्म स्मारक, मुद्रा, देवालय स्मारक, राजमहल आदि में उत्कीर्ण लेख होते हंै। अभिलेख किसी भी क्षेत्र के राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक पक्ष का मूक गवाह होता हंै। अभिलेखांे में उत्कीर्ण जानकारी को सामान्यतरू प्रमाणिक माना जाता हैं क्योंकि इनमें राजाओं की उपलēिधयाॅं, उनकी वंशावलियों, दानशीलता व विजयोत्सव आदि की सटीक जानकारी मिलती हंै। भारतीय इतिहास में सर्वप्रथम मौर्यकाल में सम्राट अशोक के द्वारा अभिलेख उत्कीर्ण करवाये गये। इसके बाद मौर्यकाल, गुप्तकाल, शुंग वंश, कुषाण राजवंश आदि ने भी अभिलेख उत्कीर्ण करवाये हैं।
इन अभिलेखों से मानव जीवन के सभी पक्षों की प्रभावशाली जानकारी मिलती हंै जो हमें प्राचीन भारत के मानव जीवन से अवगत करवाती हैं। हमें मानव के सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन और मानवीय क्रियाओं की सटीक जानकारी प्राप्त होती हंै।
सम्राट अशोक के अभिलेख प्राचीन भारत के सर्वाधिक सुरक्षित एवं तिथियुक्त अभिलेख हैं। ये शिलाओं, स्तम्भांे और गुहाओं में उत्कीर्ण कराये गये थे। अभिलेखों की भाषा प्राकृत ;पालीद्ध हैं। अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं, लेकिन शाहबाजगढ़ी और मानसेहरा ;पश्चिमोत्तर प्रदेशद्ध से प्राप्त अभिलेख खरोष्ठी लिपि में हैं। तक्षशिला और लमगान ;अफगानिस्तानद्ध से प्राप्त अभिलेख अरेमाइक लिपियों में हैं। कन्धार ;अफगानिस्तानद्ध से प्राप्त एक अभिलेख दो भाषाओं में हैंदृ यूनानी भाषा में और उसका रूपांतर अरेमाइक भाषा में हंै। ये अभिलेख आधुनिक बांग्लादेश, भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगहदृजगह पर मिलते हैं।
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How to cite this article:
जगदीश प्रसाद बैरवा. मौर्यकालीन अभिलेखों में मानव जीवन. Int J Hist 2024;6(2):332-334.