18 वीं सदी में आजमगढ़ का राजनीतिक इतिहास: जमींदारों और चकलेदारों के विशेष संदर्भ में
Author(s): कृतिका कुमारी, भूकन सिंह
Abstract: प्रस्तुत शोध पत्र 17 वीं से 18 वीं सदी में आजमगढ़ के राजनीतिक विकास पर केंद्रित है। इस शोध पत्र के द्वारा तत्कालीन समय में आजमगढ़ में हुए विकास तथा उनके मुगलों के साथ सम्बन्ध को दर्शाता है। इस समयावधि में आजमगढ़ में दो कालों का सूत्रपात हुआ । जिसमें से प्रथम आजमगढ़ के जमींदारों का समय था जिन्होंने आजमगढ़ के राजा की उपाधि धारण की या फिर उन्हें यह उपाधि प्राप्त हुई । तत्कालीन समय में यह राजा वंशानुगत अपने जमींदारी के अधिकार को बनाए रखें, आजम द्वितीय के बाद यह वंशानुगत का अधिकार, समाप्त हो जाता है। द्वितीय काल आजमगढ़ के चकलादारो का समय आता है। जिनकी नियुक्ति इन जमींदारों को हटाकर 1771 ई में अवध नवाब के मंत्री एलिच खान द्वारा की जाती है। इन दोनों कालों में आजमगढ़ का विकास हुआ नहरो के विकास के कारण कृषि में उन्नति हुई, आंतरिक बाजारो का निर्माण हुआ, टेराकोटा में वृद्धि हुई इत्यादि। आजमगढ़ इस समय इलाहाबाद सूबा के जौनपुर सरकार के निजामाबाद परागने के अंतर्गत था। प्रारम्भ में इसका विकास मेंहनगर से हुआ। 1765 ई में आजम खान प्रथम द्वारा फुलवरिया के आसपास के क्षेत्र में बसाया गया, जिसका नाम आजमगढ़ रखा गया। अन्य क्षेत्रों या परगना के समान ही राजस्व के मुद्दे को लेकर हमेशा मुगल दरबार से उनके सम्बन्ध अच्छे नहीं रहते थे। उत्तर मुगल काल में जब यह (आजमगढ़) अवध के नवाब के अंतर्गत आया तो भी उनके सम्बन्धों में कुछ बदलाव नहीं हुआ क्योंकि राजस्व अभी भी यहां से ठीक से प्राप्त नहीं हो रहा था। परिणाम स्वरुप मुगल के साथ अवध को भी परेशानी की अनुभूति हुई। इसी समय भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन हो चुका था, अवध ब्रिटिश का कर्जदार बनने लगा जिससे नवंबर 1801 ई में अवध के साथ हुई संधि के तहत यह ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आ गया।
कृतिका कुमारी, भूकन सिंह. 18 वीं सदी में आजमगढ़ का राजनीतिक इतिहास: जमींदारों और चकलेदारों के विशेष संदर्भ में. Int J Hist 2024;6(2):306-311. DOI: 10.22271/27069109.2024.v6.i2e.328