शेखावाटी में जल संचय के परम्परागत स्त्रोतः बावड़ियों के विशेष सन्दर्भ में
Author(s): प्रमोद कुमार सैनी, दिग्विजय भट्नागर
Abstract: राजस्थान में शेखावाटी क्षेत्र महत्त्वपूर्ण भू-भाग के रूप में जाना जाता है यह क्षेत्र अपने गौरवशाली और समृद्धशाली सांस्कृतिक अतीत के लिए विख्यात रहा है यह क्षेत्र प्रदेश में वीर-वीरागनाओं की भूमि है यहाँ समय-समय पर अनेक वंशों के योग्य व पराक्रमी शासक अवतरित हुए जिन्होंने स्थापत्य मुख्यत (बावड़ियों, तालाब, गढ़, हवेलियों, छतरियाँ) के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया। जल संरक्षण की दिशा में रियासतकालीन शासकों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। शेखावत काल में बावड़ियों के निर्माण का उद्देश्य मुख्य रूप से आने वाले काफिलों के लिए पानी की व्यवस्था करना था। इन बावड़ियों का निर्माण यहाँ के शासकों ने परोपकार व जनकल्याण की भावना से अभिभूत होकर करवाया वर्तमान समय में न केवल राजस्थान अपितु वैश्विक जल संकट की विकट स्थिति में इन बावड़ियों रूपी सांस्कृतिक धरोहरों का महत्त्व स्वतः स्पष्ट हो जाता है। ये बावड़ियाँ विशेष-कर किसी रानी तथा शासक के द्वारा बनवाई गई थी जो उसकी धार्मिक उदारता का प्रतीक है बावड़ी, कुँए, तालाब, मठ, छतरियाँ इन सभी के पीछे धार्मिक भावना निहित थी शेखावाटी क्षेत्र के शेखावत काल की ये बावड़ियाँ, कुँए स्थापत्य कला के नमून माने जाते है इनकी बनावट इस क्षेत्र में करीब-करीब एक ही प्रकार की होती थी।
1. प्रस्तुत शोध पत्र के माध्यम से शेखावाटी क्षेत्र में विकसित बावड़ियों के स्थापत्य के विकास की जानकारी प्राप्त करना तथा इन बावड़ियों का सांस्कृतिक इतिहास के विभिन्न पक्षों का अध्ययन करना।
2. बावड़ियों के निर्माण सम्बन्धी धार्मिक सांस्कृतिक मान्यताओं, वर्तमान समय में वैश्विक जल संकट की विकट स्थिति को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण हेतु आवश्यक प्रयास व स्थानीय और प्रशासन के साथ-साथ इन ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण में जनभागिता सुनिश्चित करना।
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How to cite this article:
प्रमोद कुमार सैनी, दिग्विजय भट्नागर. शेखावाटी में जल संचय के परम्परागत स्त्रोतः बावड़ियों के विशेष सन्दर्भ में. Int J Hist 2024;6(2):270-272.