नैतिकता और राजनितिक अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में उतर पश्चिमी प्रान्त का आकाल: 1868-1870
Author(s): Rupak Kumar
Abstract:
इस लेख में उत्तरी पश्चमी प्रान्त में 1868-1870 के आकाल के विशेष संदर्भ में नैतिक, राजनितिक प्रक्रियाओं और ब्रिटिश राज के राजनितिक अर्थव्यवस्था के परस्पर क्रिया और उनसे गुंथी हुई सामजिक आर्थिक सह-संबंधों को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है, जिससे 19वीं सदी के अंतिम दौर में उत्तर-पश्चिमी प्रान्त ने आकाल और सूखा जैसी समस्याओं का सामना किया. वस्तुतः यह सदी क्रमिक और बारम्बार आकाल और सूखा का दौर था1. विशेष रूप से 1850-1900 का काल भारतीय इतिहास में 50 वर्षों के दौरान सबसे ज्यादा बार आकाल और सूखा की समस्या से जूझने वाला समय था, जिसमें न केवल बड़ी संख्या में भोजन की कमी से लोग की मौतें हुई बल्कि बड़ी संख्या में लोगों के प्रवसन, भूखमरी, बीमारियों, कुपोषण आदि जैसे अनेक समस्याओं का सामना किया. इन आकालों का विस्तृत विवरण फेड्रिक हेन्वी द्वारा संकलित रिपोर्ट “ए नैरेटिव ऑफ़ द ड्राउट एंड फेमीन इन द नार्थ वेस्टर्न प्रोविंस 1868-1869 एंड द बिगनिंग ऑफ़ 1870” में मिलता है. इस रिपोर्ट को ही आधार बनाते हुए इस लेख के द्वारा ब्रिटिश शासन व्यावस्था का समालोचना प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है.
Rupak Kumar. नैतिकता और राजनितिक अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में उतर पश्चिमी प्रान्त का आकाल: 1868-1870. Int J Hist 2024;6(1):105-110. DOI: 10.22271/27069109.2024.v6.i1b.269