मौखिक इतिहास में स्मृति, तथ्य और संस्कृति के माध्यम से मजदूर वर्ग का इतिहास
Author(s): Ajeet Kumar
Abstract: यह लेख मजदूर वर्ग की स्मृति और संस्कृति तथा उनकी यादों के मौखिक स्रोतों के माध्यम से लिखित रिकॉर्ड की तुलना करके मजदूर वर्ग की कहानियों, प्रतीकों, किंवदंतियों और काल्पनिक पुनर्निर्माण की संरचना को निहित करता है। जिसमें स्मृति और तथ्य मौखिक इतिहास का स्वरुप तैयार किया गया है।एलेसेंड्रो पोर्टेली अपनी पुस्तक ‘द डेथ ऑफ लुइगी ट्रैस्टुली’ में बताते हैं कि पारंपरिक संस्कृतियों में सांस्कृतिक केन्द्रों के अध्ययन और मौखिक इतिहास के दृष्टिकोण से इतावली मौखिक इतिहास अनुसंधान परंपरा के बारे में बताते हैं, जिसमें राजनैतिक प्रश्न अपना एकअभिन्न हिस्सा रखता है। इस दृष्टिकोण का मूल आधार यह है कि ऐतिहासिक तौर पर हाशिये के लोगों को सुनना या सुनाना ही काफी नहीं है बल्कि उनकी आवाजो को वर्ग के आधार पर तथा उनके यादों के दमन की स्थितियों कि जांच भी एक अहम प्रश्न है। तथा बहुसंस्कृति परिप्रेक्ष्य के साथ यह मौखिक इतिहास के लिए नई चुनौतीपूर्ण दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो औद्योगिक समाज में सामाजिक समूहों और वर्गों के बीच सांस्कृतिक संघर्ष और संचार की जांच करते हुए लोगों को अपने जीवन को समझने के लिए तथा उनकी यादों के तरीकों की पहचान के लिए मौखिक इतिहास के विश्लेषण में एक वास्तविक सफलता है। पोर्टेली का मानना की खेल सामान्य रूप से विभाजित समाजों को एकजुट और शांत करने में मदद करते हैं। खेलो को श्रमिकों के दैनिक अनुभव से कई तरीकों से जोड़ा गया श्रमिकों की पहचान खेलों से की जाती थी, क्या यह सच हो सकता है। क्या खेल सामान्य रूप से विभाजित समाजों को एकजुट और शांत करने में मदद करते हैं।मौखिक इतिहास में समय, कार्य, ध्वनि, स्पेस, खेल सबका अपना महत्व और स्थान होता है। कहानी सुनाने का अर्थ समय के खतरे के खिलाफ हथियार उठाना, समय का विरोध करना या समय का सदुपयोग करना। जैसे कथाकारों को समय से स्वयं को ठीक करने और समय में आगे बढ़ने के लिए कहानी को सुरक्षित करना आवश्यक है। यह व्यक्तिगत और सामूहिक कहानियों पर भी लागू होता है। उन मिथकों पर भी जो एक समूह तथा व्यक्तिगत यादों की पहचान को आकार देता हैं यानी कहानी समय के साथ टकराव है, कहानी को बनाए रखने के लिए एक विशेष कुछ व्यक्तिगत यादों का समय हो सकता है।जैसे की ‘बैक इन स्लेवरी टाइम्स’ फार्मूला का इस्तेमाल लोक कथाओं, व्यक्तिगत या पारिवारिक तथा उन दोनों को पेश करने के लिए किया जा सकता है। मैं यहां समय और कहानियों के माध्यम से समय और कहानियों के बीच के संबंध का पता लगाने का प्रयास करूंगा जैसा कि मौखिक कथाकारओ द्वारा उन्हें बताया जाता है। क्योंकि वह कलेक्टर की उपस्थिति से आकार लेते हैं और जैसा कि वह इतिहासकारों द्वारा लिखे गए हैं और लेखक द्वारा इन विषय पर जोर दिया गया। वहीं कहानियां सुनाने का भी समय होता है, उदाहरण के लिए ऐसे किस्से जो कि सुसमाचार के पाठन में जो की कहानी के संदर्भ में एक विशेष गुण लेते हैं। क्या सच में जीवन का इतिहास और व्यक्तिगत कहानियां समय पर निर्भर करती है, क्योंकि वह कथाकारों के जीवन के प्रत्येक दिन के जोड़ और घटाव से गुजरते हैं।मैं इन सवालों को भारत के आज़ादी के बाद इतने सालो बाद भी उसकी क्या प्रासंगिकता है, उनकी जिन्दगी में क्या बदलाव आया है, को मौखिक इतिहास के माध्यम से बताने का प्रयास करूंगा।
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Ajeet Kumar. मौखिक इतिहास में स्मृति, तथ्य और संस्कृति के माध्यम से मजदूर वर्ग का इतिहास. Int J Hist 2023;5(2):32-38.