राव शेखा के समय में धार्मिक स्थिति
Author(s): विक्रम जीत सिंह
Abstract: यह अध्ययन 15वीं शताब्दी के राजपूत शासक राव शेखा के शासनकाल में स्थापित राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में व्याप्त धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक समरसता की विवेचना करता है। इसका मुख्य उद्देश्य राव शेखा के काल में धार्मिक प्रवृत्तियों, सामाजिक संरचना और समुदायों के बीच संबंधों का विश्लेषण करना है। यह शोध
शेखावाटी प्रकाश और
माधोवंश प्रकाश जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों तथा अन्य द्वितीयक ऐतिहासिक साहित्य पर आधारित गुणात्मक इतिहासात्मक पद्धति का उपयोग करता है। शोध से ज्ञात होता है कि राव शेखा शैव मत के अनुयायी होते हुए भी हिन्दू धर्म के सभी संप्रदायों, विशेषकर वैष्णव मत के प्रति सम्मान रखते थे। बीकानेर, मेड़ता और आमेर के शासकों द्वारा वैष्णव भक्ति परंपरा को अपनाने के प्रभाव से शेखावाटी में भी यह परंपरा विस्तारित हुई। आमेर और राव शेखा की वंश परंपरा के मध्य शैव और वैष्णव गुरुओं के माध्यम से आध्यात्मिक संबंध स्थापित थे। धार्मिक समन्वय मंदिर निर्माण, मूर्तिकला और धार्मिक सहिष्णुता में परिलक्षित होता है। इस काल में अफ़ग़ान पठानों, विशेषतः पन्नी पठानों का क्षेत्र में आगमन हुआ, जिनकी शांतिपूर्ण बसावट सूफ़ी संत शेख बुरहानुद्दीन की मध्यस्थता में हुए समझौते से सुनिश्चित की गई। हिन्दू-मुस्लिम समुदायों के बीच आपसी समझ बनी जिसमें एक-दूसरे के धार्मिक विश्वासों का सम्मान और गाय व सूअर से संबंधित वर्जनाओं का परस्पर पालन हुआ। सामाजिक संगठन जातिगत था, जिसमें क्षत्रिय राजनीतिक शक्ति के केंद्र में थे और ब्राह्मण धार्मिक कार्यों के संचालन में प्रमुख भूमिका निभाते थे। गाँवों की बसावट जाति और किलों के चारों ओर आधारित थी। जातीय और धार्मिक भिन्नताओं के बावजूद जीवन शांतिपूर्ण और समन्वित था। निष्कर्षतः, राव शेखा की समावेशी और व्यावहारिक शासन प्रणाली ने स्थिरता, सम्मान और सौहार्दपूर्ण सामाजिक-धार्मिक वातावरण निर्मित किया।
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How to cite this article:
विक्रम जीत सिंह. राव शेखा के समय में धार्मिक स्थिति. Int J Hist 2023;5(1):214-217.