भारतीय संत साहित्य की सगुण भक्ति धारा में मीरांबाई का योगदान-वर्तमान में प्रासंगिकता
Author(s): डॉ. सुदेश
Abstract: सगुण भक्ति धारा में कृष्ण भक्तों में मीराबाई का स्थान श्रेष्ठ माना जाता है। मीरांबाई श्री कृष्ण जी को ईश्वर तुल्य ही नहीं बल्कि अपने पति के स्वरुप में भी वरण चुकी थी। साहित्य के अनुसार बाल्यवस्था से ही उन्होंने कृष्ण जी को वरण कर लिया था। तत्पश्चात मीरा ने संपूर्ण जीवन अन्य किसी के बारे में भी विचार नहीं किया। शादी के बाद भी उन्होंने अपने पति के बारे में न सोचकर कृष्ण भक्ति पर ही अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।
मीराबाई के अनेक लोकप्रिय पदों व उनकी लोकप्रिय रचनाओं में इसका वर्णन देख सकते हैं, हालांकि इस प्रकार की काव्य रचना करना उनका उद्देश्य नहीं रहा लेकिन उनके द्वारा अपने आराध्य के प्रति निकले शब्द ही भजन के स्वरुप में ढलते चले गए। तत्पश्चात यही भजन लोक मानस के जुबान के जरिए इतने प्रचलित हुए की वर्तमान में भी कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों को पूजनीय मानकर उनके लिए शब्द-भजन कीर्तन का एक अथाह सागर हम गाहे-बगाहे हे सुन ही लेते हैं। चाहे वह खाटू वाले श्याम, वृंदावन, मथुरा, गोकुल के कृष्ण भक्ति हो, चाहे वह कुरुक्षेत्र में रचित भगवदगीता के सृजनहार हो या फिर महाभारत युद्ध के निर्णायक सूत्रधार हो। हम उनको प्राचीन काल में ही नहीं अपितु वर्तमान में भी उतना ही शाश्वत पाते हैं।
अत: मीरा की कृष्ण भक्ति के तहत हम भारतीय साहित्य की काव्यधारा में सगुण भक्ति की विचारधारा को सहर्ष स्वीकार करते हुए नवीन ही नहीं अपितु हर काल में इसका अस्तित्व स्वीकार कर सकते हैं।
DOI: 10.22271/27069109.2023.v5.i1c.212Pages: 185-189 | Views: 116 | Downloads: 43Download Full Article: Click HereHow to cite this article:
डॉ. सुदेश.
भारतीय संत साहित्य की सगुण भक्ति धारा में मीरांबाई का योगदान-वर्तमान में प्रासंगिकता. Int J Hist 2023;5(1):185-189. DOI:
10.22271/27069109.2023.v5.i1c.212