मध्यकालीन भारत की शिक्षा व्यवस्था
Author(s): भारती मीना
Abstract: समाज की संरचना में जो भी परिवर्तन होते हैं, वे आपसी तालमेल, अंतःक्रिया और सह-अस्तित्व के रूप में परिलक्षित होते हैं। यदि हम मध्यकालीन भारतीय इतिहास की ओर दृष्टिपात करें, तो यह काल प्रायः संघर्षों, आक्रमणों और सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल का युग माना गया है। विशेषतः 11वीं सदी से लेकर 1707 ईस्वी तक भारतवर्ष पर तुर्कों, मंगोलों, खिलजी वंश, पठानों, मुगलों तथा विभिन्न अरब जातियों ने समय-समय पर आक्रमण किए। इनमें से कुछ आक्रांता बनकर आए, तो कुछ स्थायी रूप से यहाँ बस गए और भारतीय जनजीवन का हिस्सा बन गए। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझने से पहले यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस्लाम के प्रभाव के बहुत पहले ही प्राचीन फारसी सभ्यता के सांस्कृतिक चिह्न बसरा और बगदाद जैसे नगरों में जीवित थे। ये नगर न केवल व्यापार और भौतिक समृद्धि के केंद्र थे, बल्कि वे धर्म, आध्यात्मिक चेतना और उच्च शिक्षा के वैश्विक केंद्र भी थे। इन शहरों ने इस्लामी जगत में बौद्धिक नेतृत्व प्रदान किया। जब इस्लाम भारत में पहुंचा, तो केवल धार्मिक प्रभाव ही नहीं, बल्कि बसरा और बगदाद की सुदृढ़ और संगठित शिक्षा प्रणाली भी साथ आई। धीरे-धीरे इन शैक्षिक परंपराओं ने भारतीय परिप्रेक्ष्य में अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी और देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैल गईं। प्रस्तुत शोधपत्र में इसी ऐतिहासिक संदर्भ को ध्यान में रखते हुए परम्परागत भारतीय शिक्षा प्रणाली और इस्लामिक शिक्षण परंपरा के समेकन, परस्पर प्रभाव और विकास के विविध चरणों का विश्लेषण किया गया है। यह अध्ययन मध्यकालीन भारत में प्रचलित अरबी-फारसी तथा हिंदी के ग्रंथों के संदर्भों के आधार पर किया गया है, जिनसे उस समय की शैक्षिक, धार्मिक और सांस्कृतिक धाराओं को समझने में सहायता मिलती है।
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How to cite this article:
भारती मीना. मध्यकालीन भारत की शिक्षा व्यवस्था. Int J Hist 2022;4(1):51-55.