पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सामाजिक-सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिवेश में दास पà¥à¤°à¤¥à¤¾ à¤à¤µà¤‚ असà¥à¤ªà¥ƒà¤¶à¥à¤¯à¤¤à¤¾ की समसà¥à¤¯à¤¾
Author(s): अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¤—त
Abstract: दास वरà¥à¤— का चितà¥à¤°à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® गà¥à¤°à¤¥ ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤£, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ गà¥à¤°à¤‚थ, बौदà¥à¤§ गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ à¤à¤µà¤‚ जैन गà¥à¤°à¤‚थों में à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हैं, यह सतà¥à¤¯ है। आधà¥à¤¨à¤¿à¤• काल में सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ दास वरà¥à¤— को जिस रूप में चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया गया है, उस रूप में वहाठचितà¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं है। पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में आरà¥à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अचà¥à¤›à¥€ थी और अनारà¥à¤¯ की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ दयनीय थी आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की पूजा होती थी, वहीं समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ ऋगà¥à¤µà¥‡à¤¦ में अनारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤°à¥à¤¤à¥à¤¸à¤£à¤¾ की गई है। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दास, दसà¥à¤¯à¥ या असà¥à¤° की संजà¥à¤žà¤¾ दी गई। दासों और दसà¥à¤¯à¥à¤“ं के अपने नगर थे जिनके विनाश की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने बार-बार इनà¥à¤¦à¥à¤° से ही है। आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚-अनारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का संरà¥à¤˜à¤· परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ समय तक चलता रहा, अनà¥à¤¤ में आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने दसà¥à¤¯à¥ तथा दास जातिवालों अनारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को बà¥à¤°à¥€ तरह पराजित कर दिया। यà¥à¤¦à¥à¤§ में काम आने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ बहà¥à¤¤ अधिक संखà¥à¤¯à¤¾ में दसà¥à¤¯à¥ या दास जाति हो गईं। इन शेष लोगों को विवश होकर या तो आरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से कहीं बहà¥à¤¤ दूर जंगल कनà¥à¤¦à¤°à¤¾à¤“ं की शरण लेनी पड़ी या तो उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की अधीनता सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° करनी पड़ी। फलतः इस दसà¥à¤¯à¥ या दास जाति के इतने अधिक लोग गà¥à¤²à¤¾à¤® बनाये गये कि दास शबà¥à¤¦ का अरà¥à¤¥ ही गà¥à¤²à¤¾à¤® हो गया।
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अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• कà¥à¤®à¤¾à¤° à¤à¤—त. पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सामाजिक-सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• परिवेश में दास पà¥à¤°à¤¥à¤¾ à¤à¤µà¤‚ असà¥à¤ªà¥ƒà¤¶à¥à¤¯à¤¤à¤¾ की समसà¥à¤¯à¤¾. Int J Hist 2021;3(2):32-34.