प्राचीन भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में दास प्रथा एवं अस्पृश्यता की समस्या
Author(s): अभिषेक कुमार भगत
Abstract: दास वर्ग का चित्रण भारत के प्राचीनतम ग्रथ ऋग्वेद पुराण, ब्राह्मण ग्रंथ, बौद्ध ग्रन्थ एवं जैन ग्रंथों में भी उपलब्ध हैं, यह सत्य है। आधुनिक काल में स्त्री एवं दास वर्ग को जिस रूप में चित्रित किया गया है, उस रूप में वहाँ चित्रित नहीं है। प्राचीन काल में आर्य की स्थिति अच्छी थी और अनार्य की स्थिति दयनीय थी आर्यों की पूजा होती थी, वहीं सम्पूर्ण ऋग्वेद में अनार्यों की भर्त्सणा की गई है। इन्हें दास, दस्यु या असुर की संज्ञा दी गई। दासों और दस्युओं के अपने नगर थे जिनके विनाश की प्रार्थना आर्यों ने बार-बार इन्द्र से ही है। आर्यों-अनार्यों का संर्घष पर्याप्त समय तक चलता रहा, अन्त में आर्यों ने दस्यु तथा दास जातिवालों अनार्यों को बुरी तरह पराजित कर दिया। युद्ध में काम आने के पश्चात बहुत अधिक संख्या में दस्यु या दास जाति हो गईं। इन शेष लोगों को विवश होकर या तो आर्यों से कहीं बहुत दूर जंगल कन्दराओं की शरण लेनी पड़ी या तो उन्हीं की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। फलतः इस दस्यु या दास जाति के इतने अधिक लोग गुलाम बनाये गये कि दास शब्द का अर्थ ही गुलाम हो गया।
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अभिषेक कुमार भगत. प्राचीन भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में दास प्रथा एवं अस्पृश्यता की समस्या. Int J Hist 2021;3(2):32-34.