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International Journal of History

2020, Vol. 2, Issue 2, Part C

भारत में स्थानीय स्वायत्त शासन एवं सामूहिक विकास की अवधारणाः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन


Author(s): Dr. Dhananjay Kumar Choudhary

Abstract: भारत में पंचायतीराज की अवधारणा बहुत प्राचीन है। यहां प्राचीन संस्थाओं से सम्बन्धित अवधारणा को ही परिवर्तित स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। ‘‘पंचायतीराज’’ शब्द का अस्तित्व स्वतन्त्र भारत में श्री बलवन्तराय गोपाल जी मेहता के ‘‘लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण’ प्रतिवेदन से उदय हुआ, शाब्दिक दृष्टि से पंचायतीराज शब्द हिन्दी भाषा के दो शब्दों ‘‘पंचायत’’ और ‘‘राज’’ से मिलकर बना है जिसका संयुक्त अर्थ होता है पांच जनप्रतिनिधियों का शासन। भारत के प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थों में भी पंचायत अथवा ‘‘पंचायती’’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘‘पंचायतन्’’ शब्द से उद्भूत हुआ है। संस्कृत भाषा ग्रन्थों के अनुसार किसी आध्यात्मिक पुरूष सहित पांच पुरूषों के समूह अथवा वर्ग को पंचायतन् के नाम से संबोधित किया जाता था। परन्तु शनैः शनैः पंचायत की इस आध्यात्मिकतायुक्त अवधारणा में परिवर्तन होता गया और वर्तमान में पंचायत की अवधारणा का अभिप्राय इस प्रकार की निर्वाचित सभा से है जिसकी सदस्य संख्या प्रधान सहित पांच होती है और जो स्थानीय स्तर के विवादों को हल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। गांधी जी ने भी पंचायत शब्द की व्यख्या करते हुए लिखा है कि, ‘‘पंचायत’’ शब्द का शाब्दिक अर्थ ग्राम निवासियों द्वारा चयनित पांच जनप्रतिनिधियों की सभा से है।

Pages: 134-136 | Views: 945 | Downloads: 444

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How to cite this article:
Dr. Dhananjay Kumar Choudhary. भारत में स्थानीय स्वायत्त शासन एवं सामूहिक विकास की अवधारणाः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन. Int J Hist 2020;2(2):134-136.
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