Abstract: युद्ध के वर्षों में भारतीय राष्ट्रवादित को प्रौढ़ता मिली। आंदोलन को गति मिली और एक अर्थ में वह अधिक शक्तिशाली हुआ। ब्रितानी सरकार ने एक सीमा तक युद्ध में भारत के अवदान की प्रशंसा की थी और यह उम्मीद करने का कारण था कि उसे पूर्ण स्वतंत्रता भले न दी जाये, कुछ बड़े सुधार तो किये ही जायेंगे। राष्ट्रवादी नेता भी उम्मीद बांधे हुए थे लेकिन यदि उनकी आशाओं पर पानी फिरता तो वे पुनः संघर्ष के लिए तैयार थे।
19वीं सदी में भारतीय राष्ट्रीयता की कल्पना के दो आधार रहे हैं- पश्चिमी प्रतिमान के अनुसार अथवा भारतीय सांस्कृति एकता के आधार पर पश्चिमी प्रतिमान का मौलिक आधार राजनीतिक एकता था, जो 19वीं सदी में पूर्णरूप से स्थापित हुई। भारत में एकता के आधारों भाषा, जाति, धर्म का अभाव दिखाई पड़ा। इसलिए राष्ट्रीयता को भौगोलिक और राजनीतिक आधारों पर स्थापित किया। इस आधार पर भारतीय नेता अंग्रेजी साम्राज्य के प्रति आभारी रहे तथा उसके गुणगान करने और राजनीतिक सुविधाएँ मांगने तक सीमित रहे। राष्ट्रीयता का दूसरा प्रतिमान भारतीय सांस्कृतिक एकता और प्राचीन महानता तथा उपलब्धियों के आधार पर था।